घुग्घूस : भारत मे अँग्रेजो के शासनकाल मे श्रमिको को 14 घंटे की मजदूरी करना पडता था 14 घंटे काम करना पडता था
27 नवंबर 1942 मे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा भारतीय श्रम संमेलन के 7वे सत्र मे 14 घंटे के काम का विरोध कर 8 घंटे काम के प्रस्ताव को रखा इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया
कितनी बडी और महत्वपूर्ण बात थी की अंग्रेजो के काले शासनमे भारतीयो को 8 घंटे काम की इजाजत मिल गई थी
अब देश मे लोकतंत्र का अमृतकाल चल रहा है और देश का आम नागरिक बेबस और लाचार हो गया मजबुरी ऐसे के जिने क लिए कमाना जरुरी हो गया सरकारी नियम न्याय कानून सब कागज पर धरा के धरा रह गया है
चंद्रपूर औद्योगिक जिल्हे के घुग्घूस शहर की प्रदूषण को लेकर सबसे विवादित कंपनी लॉयड्स मेटल्स इस वक्त कामगारो के शोषण का नई पहचान बन गई है!
इस मौजुदा समय मे लॉयड्स मेटल्स कंपनी मे 1.2 एमटीपिए वायर रॉड और 4.0 एमटीपिए पेलेट प्लांट परियोजना का धडल्ले से चल रहा है
इस परियोजना का काम कई कंपनीयो और ठेकेदारो को दिया गया है
इसके लिए देशभरसे मजदूरो को लाया गया है मजदूरोसे 12 घंटे काम कराया जाता है और बदले मे केवल 450 रुपये दिये जाते है
इस जानलेवा महंगाई के दौर मे घंटे के 37.5 रुपये से काम कराया जा रहा है
सुरक्षा साधन भी इस्तेमाल को नही दिये जाते है
मजदूरो की जान जाती है तो जाये कंपनी को कोई लेना - देना नही है
एक मजदूर हुवा घायल
सुरक्षा अभाव के चलते लॉयड्स कंपनी के अंतर्गत कार्यरत रे कंपनी के ठेकेदार सम्राट माल के मजदूर संतोष घुईमाली का कंपनी मे अपघात हुवा है
उसका इलाज चल रहा है ऐसे अपघात अब आम बात है
कामगार आयुक्त और फॅक्टरी इन्स्पेक्टर तो बस सफेद हाथी है?
कामगारो पर हो रहे अन्याय अत्याचार की सुध लेकर उन्हे न्याय देने का कार्य कामगार आयुक्त का होता है
और सुरक्षा के अनदेखी के कारण हो रहे अपघात पर श्रमिक को न्याय दिलाने एवम कंपनी को दंडित करने का कार्य फॅक्टरी इन्स्पेक्टर का होता है
ये अधिकारी आम मजदूरो के पहुच से भी दूर है ये कंपनीयो मे आते और जाते है लेकिन इसकी खबर किसी को नही चलती सारा खेल कंपनीयो से मिलने वाली रेवडीयो का ही जिसके आगे ये अधिकारी भी बेबस है
*अपाहीज नेताओ से उम्मीद कैसी?*
इस शहर अनेक राजनैतिक दल है जो जनता के हितैशी होने का दम भरते है
इसमे सत्ता पक्ष और विपक्ष भी शामिल है मगर मजदूरो पर हो रहे अन्याय पर उनके मूह से एक लफ्ज नही निकलता मानो उनके मूह मे दही जमा हो या फिर उन्हे लकवा मार गया है
इसके पीछे की वजह है कंपनीयो से मिलने वाला चंदा और मलाईदार धंदा!
कामगार संघटनाये तो बस नामकी ही बची है जिनका काम मॅनेजमेंट की जी - हुजरी करके उन्हे खुश रखना होता है
क्या इस लोकतंत्र मे इन मजदूरो की हक की बात करनेवाला इन्हें न्याय दिलानेवाला कोई मसीहा आगे आयेगा?
या ये शोषण अत्याचार निरंतर चलता जायेगा?


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